Thursday, July 23, 2020

Himalayan | Yogi | Baba

    'ॐ  नम: शिवाय '

          "अघोरी "


      

शैव संप्रदाय में साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। अघोरी की कल्पना की जाए तो श्मशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधु की तस्वीर जेहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है। अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी आपको ठग सकता है लेकिन अघोरियों की पहचान यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है और बड़ी बात यह कि तब ही संसार में दिखाई देते हैं जबकि वे पहले से नियुक्त श्मशान जा रहे हो या वहां से निकल रहे हों। दूसरा वे कुंभ में नजर आते हैं। 


अघोरी को कुछ लोग ओघड़ भी कहते हैं। अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु समझा जाता है लेकिन अघोर का अर्थ है अघोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। कहते हैं कि सरल बनना बड़ा ही कठिन होता है। सरल बनने के लिए ही अघोरी कठिन रास्ता अपनाते हैं। साधना पूर्ण होने के बाद अघोरी हमेशा- हमेशा के लिए हिमालय में लीन हो जाता है।जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफन आदि से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है।


           


अघोर विद्या सबसे कठिन लेकिन तत्काल फलित होने वाली विद्या है। साधना के पूर्व मोह-माया का त्याग जरूरी है। मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जिसके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गंध, प्रेम-नफरत, ईर्ष्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाएं। सभी तरह के वैराग्य को प्राप्त करने के लिए ये साधु श्मशान में कुछ दिन गुजारने के बाद पुन: हिमालय या जंगल में चले जाते हैं।


#अघोरी क्यों करते हैं श्मशान साधना...




घोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। अघोरी जानना चाहता है कि मौत क्या होती है और वैराग्य क्या होता है। आत्मा मरने के बाद कहां चली जाती है? क्या आत्मा से बात की जा सकती है? ऐसे ढेर सारे प्रश्न है जिसके कारण अघोरी श्मशान में वास करना पसंद करते हैं। मान्यता है कि श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विघ्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं।
अघोरी मानते हैं कि जो लोग दुनियादारी और गलत कामों के लिए तंत्र साधना करते हैं अंत में उनका अहित ही होता है। श्मशान में तो शिव का वास है उनकी उपासना हमें मोक्ष की ओर ले जाती है।


#अघोरी श्मशान में कौन-सी साधना करते हैं...



अघोरी श्‍मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्‍मशान साधना, शव साधना और शिव साधना।
शव साधना : मान्यता है कि इस साधना को करने के बाद मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएं पूरी करता है।
#आधी रात के बाद श्मशान साधना


शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।


शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्‍मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है। 


#भूत-पिशाचों से बचने के लिए क्या करते हैं अघोरी.

 

   


अघोरियों के पास भूतों से बचने के लिए एक खास मंत्र रहता है। साधना के पूर्व अघोरी अगरबत्ती, धूप लगाकर दीपदान करता है और फिर उस मंत्र को जपते हुए वह चिता के और अपने चारों ओर लकीर खींच देता है। फिर तुतई बजाना शुरू करता है और साधना शुरू हो जाती है। ऐसा करके अघोरी अन्य प्रेत-पिशाचों को चिता की आत्मा और खुद को अपनी साधना में विघ्न डालने से रोकता है।

#क्यों जिद्दी और गुस्सैल होते हैं अघोरी..


अघोरियों के बारे में मान्यता है कि वे बड़े ही जिद्दी होते हैं। अगर किसी से कुछ मांगेंगे, तो लेकर ही जाएंगे। क्रोधित हो जाएंगे तो अपना तांडव दिखाएंगे या भला-बुरा कहकर उसे शाप देकर चले जाएंगे। एक अघोरी बाबा की आंखें लाल सुर्ख होती हैं लेकिन अघोरी की आंखों में जितना क्रोध दिखाई देता हैं बातों में उतनी ही शीतलता होती है।


#अघोरी की वेशभूषा...


कफन के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती है। नरमुंड न हो तो वे प्रतीक रूप में उसी तरह की माला पहनते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध और पूरे शरीर पर राख मलकर रहते हैं ये साधु। ये साधु अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं।



अघोरपंथ तांत्रिकों के तीर्थस्थल...


अघोरपंथ के लोग चार स्थानों पर ही श्मशान साधना करते हैं। चार स्थानों के अलावा वे शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्‍य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं। यदि आपको पता चले कि इन स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर भी अघोरी साधना करते हैं तो यह कहना होगा कि वे अन्य श्मशान में साधना नहीं करते बल्कि यात्रा प्रवास के दौरान वे वहां विश्राम करने रुकते होंगे या फिर वे ढोंगी हों


Wednesday, July 22, 2020

I don't know | Everybody | Know |

       


     I don't know why nobody 

 could answer this question for you, 

 

https://en.wikipedia.org/?title=Sadhguru_Jaggi_Vasudev&redirect=no






 Everybody   knows this. So you went to vipassana. That means you must just shut up and do it,not ask this question, that question, You know what is my handicap, tch? You want to know? SUPER: A Buddhist asks Sadhguru a Puzzling Question #Vipassana Speaker: This question is from Decent Diwan. Sadhguru: Woah! Speaker: "Respected guru ji. I'm a Buddhist and a vipassana practitioner. I have a question which I've asked many vipassana teachers and other gurus, but everybody said that no one can answer this. 



In one of your video you mentioned, and also it is said in Buddhism, that rebirth is due to our unfulfilled desire or karma. I accept this but then a question arises. Let us suppose I took birth for millions oftimes, because of my karma and desire but before my very first birth, there was no body,no mind, karma, desire or nothing of me existed, then why and how that very first birth came to existence"? Sadh guru: Now, even I'm wondering about that, about you! Well no you're a decent guy, I'm like thisIn  what to do. Let's take that question further back.


     
https://en.wikipedia.org/?title=Sadhguru_Jaggi_Vasudev&redirect=no
Sadhguru
 


It's not just about your birth. Well in the yogic culture there are theories which are explained in the form of dialectical stories how Siva was like Shava. Shava means a corpse. He was inert, phenomenal energy but inert. Then energy or Shakti came and danced around him, upon him. Then he got kind of woke up. Well, we are, you know, picturizing it as a man and a woman, but that's not what we're talking about,inert means nothing happening, no reverberation.



 No reverberation means no creation;energy got introduced, reverberation started. From a simple basic reverberation it got more and more complex. As reverberations became more complex it became matter, matter became small molecules, they became planets, planets became many things,life happened, variety of things; you know the evolutionary theory from there on.


 Evolutionary theory only starts after life has started or at the beginning probably, but if you go back; creation itself, we may not know the exact trajectory of how it happened, but we approximately know how it happen edeven as per modern science. So in the modern scientific parlance,the same thing is said today – that if you apply energy, not even into it, just around it. 





                                               
https://en.wikipedia.org/?title=Sadhguru_Jaggi_Vasudev&redirect=no
       
  


Suppose you create vacuum in a container and apply energy, not into the vacuum, just around it, virtual protons and virtual neutrons will erupt. That means creation begins to happen. Proton, neutron just have to get together for an atom to happen. Once an atom has happened, creation has started. So similar things are said in modern science.


I don't want to go into any theories, but obviously creation began somewhere. Somewhere means it may not be within the projections of human mind in terms of time, because it's not one. But in the yogic system, there have been estimates that there have been eighty-four creations till now.
 Eighty-three creations till now,this is the eighty-fourth one.

 And up to one-hundred-and-twelve cycles of creation can happen. Beyond that, creation will be material-free,just pure energy creation. But we're talking in terms of maybe billions of years or trillions of years, I don't know. But those projections are made. Well, obviously it's just a theory. Nobody can prove or disprove anything about it. 




But it looks like a plausible theory, because the markings of eighty-three creations are there in our system, in various aspects of life around us, the markings of eighty-three, and this being eighty-four are there for those who look very closely at it.


 So how did you, such a decent guy happen? Well, so this question doesn't go that far as I took it just now. It's talking about "If I did not have karmic substance,how did I happen?" That's the question. Well, you don't need a spiritual answer,Charle…

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